BHANI DHORA CHURU

समाजों और संतों के मध्‍य जब से दूरियां बनी है, समाजों ने जितना अधिक खोया उतना संतों ने नहीं, संत कें पास तो सन्‍तोष था किसी दूसरे ने उधार भी नहीं लिया। समाजों की अपनी संरचनायें हुआ करती है जो समय पाकर टूटी ही है, समाज के आध्‍यात्मिकता के स्‍तम्‍भों में मठो की भूमिका मंदिरों के समान ही रही है कहीं कहीं ताे अधिक भी। हो सकता है कि ग़हस्‍थ को मंदिरों का वास्‍तु इन्‍हीं मठो ने दिया हो। चूरू शहर के उतर में हठ योगियों का स्‍थल है जो हमेशा से ही शहरवासियों काे सम्‍मोहित करता आया है। शहरवासी नहीं बता सकता कि इस धरती पर यह आश्रम कब से है, बाबाजी के पास जाने पर बाबाजी भी नहीं बता सके, चूंकि यह उनका विषय भी नहीं, निराश हुआ जानकारी तो होनी चाहिये। बल्‍ख बुखारा के राजा इब्राहिम ने इस आश्रम में आकर हाडी भांडग के नामकरण से अपने वैराग्‍य को दिशा दी आैर शिवलोक में चला गया। राजा मालदेव का आध्‍यात्मिक और नीति गुरू सन 1590 से 1600 के मध्‍य यहां अाना अनुमानित किया जाता है। हाडी भांडग से भी पूछा जाये तो वह भी यही बतायेगें कि मैं तो इस मठ का सेवक हूं। मेरा मानना है कि यह मठ करीब तीन हजार वर्ष पुराना है। मठों की श्रंखला का ही एक भाग है यह साधक का साधना स्‍थल जो महाभारत काल में महाभारत के युद्ध के जिक्र से जुडे हैं। आसपास खोजा जाये तो इस मठ की वैभवता और पुराने होने के और समाधियों के जमींदोज होने के व़तान्‍तों के साथ इसके यौवनावस्‍था को जाना समझा जा सकता है। इस आश्रम में रहने वाले संतों को चूरू शहर के प्रबुद्धगणों की नितान्‍त आवश्‍यकता जो आध्‍यात्मिक के अतिरिक्‍त समाजों के साथ चलने वाले गुणों से वंचित रह गये है जैस रसायनज्ञ, भौतिकीजन, योगीजन, इतिहासकार आदि आदि जो इस आश्रम को दिशा दे और समाज की संतानों काे रास्‍ता दिखा सके। तस्‍वीर में भानीनाथ आश्रम की वैभवता के चिन्‍ह हैं जो आश्रम से पश्चिम और उतर दिशा की ओर स्थित समाधियाें जो आश्रम के योग साधकों पूजनीय भाउनाथ जी और मौज नाथ जी की है। मैेंने आश्रम की आवाज सुनी है। आश्रम पुकार रहा है कि समाज के गणों हम शिव के गणों के पास आओं और यह संस्‍क़ति जो आपके ही समाज का अंग है को आगे बढाने आओ। मैने यह अनुभव किया है कि ये निश्वित ही अकेले हो गये हैं।




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