PHOGAN SARDARSHAHAR CHURU

चूरू जिले के थळी प्रदेश की पीळी धरती ने अतीत में एक अलग ही दुनिया बसा रखी थी, तभी तो मेरे कई मित्रों ने इसे अनछुई धरती के नाम से जाना और समझ कर अपने उदगार व्यक्त किये। जिले के पश्चिम दिशा के अंतिम छोर के ग्राम धीरासर हाडान से आरम्भ् होकर सरदाशहर एवं सरदारशहर से भालेरी जिसका पुराना नाम राजवास था, से पूर्व मार्ग से होकर उतर के क्षेत्र में स्थित साधुओं एवं चौहानों के निवास ददरेवा जो कालान्तर में दर्दरेवा के नाम से जाना एवं समझा गया, के उतर दिशा के धोरों में कौन रहा करता था, अभी भी अज्ञात है। खारे पानी की इस धरती में राजास, बळाळ, डालमाण, कानडवास के निवासियों ने अपने पदचिन्हो की छाप अवश्‍य छोडी है परन्तु कोई इन पदचिन्हो की रेखाओं को पढ नहीं पाया। कोयलापाटन शहर इस सता के केन्द्र में था एवं यहां आध्यातिम्कता एवं वैभवता के संगम की दुनियां यहां सांसे लिया करती थी। ईश्वर जानता है, कोयलापाटन की आत्मा को यह देह रास नहीं आई और साधु निमित कर अपने रूप को बदला और फोगां के सात बासों में अपनी रूह को रमा लिया। चूंकि कहा जाता है, पूर्वज और प्रारब्‍ध नहीं बदलते। फोगां पर आज्‍ा भी कोयलापाटन की वैभवता के चिन्ह बाकी है। इन्ही् अवशेषों ने इतिहासकारों को सम्मोंहित कर रखा है। फोगां में जब में सर्वप्रथम गया तो वहां की धरती ने अपने अतीत रूपी सुन्दर चेहरे पर एक झीणा घुंघटा लगा रखा है। फोगों के जर्रे जर्रे पर इसके अतीत की वैभवता इस तरह बिखरी पडी है जिस प्रकार कळकळ करती नदी अपने साथ गोळ गोळ गळगचीये लेकर आती है। तस्वीर में कोयलापाटन की धरती से फोगां की धरती पर आई वैभवता जिसे अनिल पारीक जो नाकरासर के रहने वाले हैं जिनका ननीहाल फोगां है द्वारा भेजी गई है।



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