मुझे जब भी कहीं ऐसी पुरानी संरचना नजर आती है तब प्रोफेसर डीसी सारण द्वारा कहे गये उन शब्‍दों की यादें ताजा हो आती है कि यह धरती अनछुई है। अपने आंचल में न जाने कितने पदचिन्‍हों को छुपाये बैठी है, असल इतिहास तो बाकी है। सारण साहब ने सत्‍य कहा है असल इतिहास तो इस धरती के धोंरों से निकलना शेष है। खिराज भक्‍त की गोगामेडी से लुकशा जोहड् उतर दिशा में करीब 5 किमी रह जाता है पक्‍की सड्क है। सड्क के पूर्व में जानकारी लेने पर बताया गया कि यहां कभी शमशान स्‍थल हुआ करता था। यह नींव के रूप में बची सरंचना इस शमशान स्‍थल पर विश्राम कर रहे किसी व्‍यक्ति की है। पूरे शमशान स्‍थल में मात्र यही नींव बची है बाकि तो इस धरती ने अपने में समाहित कर लिया। यह संरचना कितनी पुरानी है मैं नहीं जान सका।

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