LEELKI, RAJGARH, CHURU
लीलकी ग्राम का नामकरण - चित्र में दिखाई दे रहे इन दो गुम्बजाकार मंदिरों का निर्माण किसने कराया आज भी ग्रामवासियों के लिए अज्ञात है। संतो का यह ठीकाणा ग्राम के पूर्वी और उतरी कोण पर बना है। मठ में कौन रहा करता था किसी को भी जानकारी नहीं है। अपना उल्लेखित समय बिता कर चला गया और पूजा के भाव अर्थात पूजे जाने के श्राप से ग्रसित देवता भी अन्यत्र मानुषों के संग रहने चले गये आज इन मठों में विरानगी एवं सफेद कळी की परतों में इतिहास भी छुप सा गया है और रह गई तो यह बानगी कि ये मठ तो ग्राम के बसने से पूर्व के हैं। ये मठ हैं या मंदिर अथवा इन साधना स्थलों को केन्द्र मानकर कोई और भी भवन होंगें जो कालान्तर के कारण नेपथ्य में चले गये। मैं नहीं जानता कि इन मठों में से एक मठ में रखा शंख किस देवता के हेतुक नाद किया करता था। मठ के मुख्य आळे पर हाथी पर बैठा कोई इन्द्र सरीखे देवता का भिति चित्र है। श्री के के पाठक ने अपनी पुस्तक में सच ही कहा है कि कलयुग में अगर सबसे कम पुजा गया तो वह इन्द्र ही है। चलो आगे चलते हैं, सन 1914 की बात है काफिला कहें या परिवार कोई फर्क नहीं पडता। इन मठों में रहने वालों को पता चला कि यहां जो परिवार कहीं से आकर आगे जा रहा है अति चिन्ता ग्रसित हो रहा है, का कारण बालिका को सांप द्वारा डस लिया गया है एवं बालिका विष से नीली पड गयी है। जैसा कि साधु की नियति होती है वह दर्दहारा होता है, अविलंब बिलखते परिवार के पास गये पर सभी को निराश होना पडा बालिका की हालत बिगड चुकी थी और अंतिम सांसे ले रही थी। जैसा कि मनुष्य के हिस्से में खाली मुठी और बन्द मुठी का खेल आया है। टूटे दिल से रोते हुए परिवार ने अपने दिल पर पत्थर रख यह सोचते हुए कि अंतिम संस्कार ये साधु कर देगें आगे की राह ली। विधाता का खेल देखो नियति ने तो दूसरा ही पांसा पकड रखा था बच्ची की सांसों काे गिनने का खेल आरम्भ हुआ समय गुजरता गया सांसे जुडती गई और सांप का विष साधुओं के प्रण और प्रणाम के आगे अपना रंग नहीं दिखा सका और बच्ची स्वस्थ हो गयी। लेख तो देखो अब तो बच्ची का परिवार भी यही और पिता भी यही बाकि तो नियति की आंधी अपने साथ ले गयी। अब इस बालिका रूपी आत्मा का इस संसार में कोई नाम तो हो। बाबाजी ने कहा बच्ची अपने नीले रूप में अाई थी आज से इस दिव्य आत्मा का सांसारिक नाम लीलकी होगा। समय पर लीलकी नित्य लोक में चली गई और आज भी अपना आशीर्वाद इस ग्राम को दे रखा है। लीलकी का आशीर्वाद आज इस ग्राम को है जिसके कारण ही ग्राम का प्रतिष्ठा दूर दूर तक है। मेरा उस दिव्यात्मा को शत शत नमन और मैं भी लीलकी से आशीर्वाद चाहुंगा कि लीलकी ग्राम की संततियों की तरह मेरी संतति पर भी लीलकी के आशीर्वाद का ब्रम्हास्त्र मेरे पास हो। उस कालजयी दिव्यात्मा को पुन प्रणाम। मेरा ग्राम से निवेदन है कि उस दिव्यात्मा का मंदिर बने और कभी कभार लीलकी अपने मानुषी रूप में बितायी गयी इस पीळी धरती को अपने हिंडोळे में बैठकर अाशीर्वादों को पोटळी लेकर कुछ पल आप लोगों के साथ बिताने आ ही जाये।
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