shyam pandia
महाभारत का युद्ध समाप्त हाेने के बाद युधिष्ठर द्वारा अश्वमेघ यज्ञ आरम्भ किया गया। जैसा कि सुना जाता है यज्ञ में पूर्णाहूति के समय वीजित पक्ष के सभी योद्धाओं का होना आवश्यक है। तारानगर तहसील के कैलाश ग्राम से उतर दिशा में इस रमणिक टीले पर स्थित अवधूत तपस्वी श्याम पांडिया का तपस्थली है। महाभारत कालीन इस तपस्वी को जब पता चला कि कुरूक्षेत्र की धरती पर एक बहुत ही भयंकर युद्ध होने वाला है तो जिज्ञासा एवं एक पक्ष में शामिल होने श्याम पांडिया कुरूक्षेत्र की धरती पर गये। श्याम पांडिया ने अपनी मनोव़ति वश पाण्डवों की ओर होने का मन बनाकर गये थे परन्तु वहां जाकर देखा की यहां ताे मुख्य युद्ध तो भाई भाइ्र के मध्य हो रहा है। वैराग्य का धनी श्याम पांडिया दुखी मन से वापिस अपने तपोभूमि आ गये। चूंकि श्याम पांडिया युधिष्ठर की ओर से मन बनाकर गये थे तब यह माना गया कि वे वीजित पक्ष से थे और अश्वमेघ यज्ञ में उनकी अनुपस्थित के कारण ही यज्ञ में अग्नि देवता का सपत्निक आना नहीं हो रहा था। चूंकि भगवान श्रीकष्ण को तुरन्त पता चल गया और कहा कि जब तक श्याम पांडिया का यज्ञ स्थल पर प्रवेश नहीं होगा पूर्णाहुति नहीं होगी। इस पर भीम हो पांडिया को लाने भेजा गया और पवन वेग से भीम रवाना हुए। सुना जाता है कि भीम बांय होकर श्याम पांडिया के पवित्र स्थल पर गये थे वैसे गुगल मेप पर रास्ते को देखा जाये तो कुरूक्षेत्र-बांय-श्याम पांडिया तीनो सीधी रेखा में हैं इससे यह प्रमाणित होने में सहायता मिलती है कि भीम श्याम पांडिया को लेने बांय के रास्ते से आये थेा बांय में आज भी भीम बावडी है। भीम जब सुबह सुबह इस रमणिक टीले पर पहुंचे तो तपस्वी नहाकर बाहर आये और अपनी धोती सुखाने हेतु हवा में ही बिना को अवरोध विरोध के लटका दी, देखकर भीम को आश्चर्य हुआ और प्रणाम कर अपने ज्येष्ठ भ्राता का संदेश सुनाकर यज्ञ में उपस्थित होने का निवेदन किया और कहा आप मेरे साथ चलो ताकि मैं आपको जल्द ही यज्ञ स्थान पर ले चलूं। इस पर श्याम पांडिया ने कहा कि तुम चलो मैं आ रहा हूं और वार्ता इस बात पर खत्म हुई कि भीम काे श्याम पांडिया ने यह कह कर भेज दिया कि मैं तुमसे पहले यज्ञ स्थल पर पहुंचुगा। सुना है कि भीम जब यज्ञ स्थल पर गये तो श्याम पांडिया का मंद मंद मुस्कुराते देखा। मुझे एक बात याद गयी कि मैेने एक दिन कहीं लिखा था कि यह मरूधरा कहती है कि अजनबी दुनिया के हिण्डोळे पूरणमसी की रातों में यूं ही मुझे निहराने नहीं आते, मेरी गोद में विश्राम कर रहे इन विशाल टिल्लों के पिछवाडे पता नहीं कौन कौन बसता था। मंदिर के सामने एक बावडी है। टील्ला भव्य एवं विशाल है जिस पर हनुमानजी एवं महाभारतकालिन अवधूत तपस्वी धर्मपारायण श्याम पांडिया का मंदिर है। टील्ले से आसपास करीब 15-15 किमी दूर दिखाई देता है। वर्षाकाल में यहां की रमणिकता देखने लायक होती है। एक दिन अपने को आध्यात्मिकता से ओतप्रोत कर इस पवित्र तपोस्थली पर परिवार के साथ श्याम पांडिया के दर्शनार्थ अवश्य जायेें।
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