कुण्ड एवं टांका DOME COVERED KUND
चूरू जिले के रेतीले क्षेत्र में वर्षा जल को संग्रहित
करने की महत्वपूर्ण परम्परागत प्रणाली है। इसे कुंड कहते हैं। यह विशेषतौर से
पेयजल के लिए प्रयोग होता है। यह सूक्ष्म भूमिगत सरोवर होता है। जिसको ऊपर से ढक
दिया जाता है इसका निर्माण चूने से किया जाता था जो स्थानीय स्तर पर तैयार किया जाता था है वर्तमान में चूने की अनुपलब्धता के कारण आजकल इसका निर्माण सिमेण्ट से भी होता है। चूरू जिले का
भू-जल लवणीय हैं इसलिए वर्षा जल कुंड में इकट्टा कर पीने के काम में लिया
जाता है। वह पानी निर्मल होता है। कुंड का निर्माण तश्तरी प्रकार का निर्मित होता हैं। कुंड का निर्माण खेतों में, किलों में,तलहटी में, आंगन आदि में
बनाया जाता है। इसका निर्माण सार्वजनिक रूप से लोगों द्वारा, सरकार द्वारा तथा निजी
निर्माण स्वंय व्यक्ति द्वारा करवाया जाता है।
पंचायत की जमीन पर निर्मित कुंड सार्वजनिक होता हैं। जिसका
प्रयोग पूरा गांव करता है। कुछ टांके (कुंडी) गांव के अमीरों अथवा भामाशाहों द्वारा परोपकार स्वरूप दिये जाते हैं। एक परिवार विशेष उसकी देख-रेख करता हैं। कुंड का निर्माण जमीन या चबूतरे के ढ़लान के हिसाब से किया जाता है जिसे पायतनया अगोर कहा जाता हैा जिसका अर्थ होता है बटोरना। पायतन को साफ रखा जाता है, क्योंकि उसी से बहकर पानी
कुंड में जाता है। कुंड के मुहाने अथवा एकदम उपरी भाग पर पर एक बडा छेद किया जाता है जिसके ऊपर जाली लगी
रहती है,ताकि कचरा नहीं जा सके। कुंड चाहे छोटा हो या बडा़ उसको ढंककर रखते हैं।
पायतन का तल पानी के साथ कटकर नहीं जाए इस हेतु इसका भी चूने से पक्का निर्माण किया जाता हैं।
कुंड 40-30 फिट तक गहरा होता है। कुंड से पानी निकालने के लिए रस्सी का प्रयोग
किया जाता है। सार्वजनिक कुंड में एक खेळ का भी निर्माण किया जाता हैा खेळ का प्रयोग साथ आये अथवा कुंड के पास से गुजरने वाले पशुओं के पानी हेतु पानी एकत्रित करने में आता हैा
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