FORT OF SAWAR सावर का फोर्ट्
गिरदावर जी श्री लक्ष्मणसिंह जी से कई दिनों से मिलने की इच्छा थी पटवारी की नौकरी ज्वाईन की तब से गिरदावरजी एवं उनके भानजे श्री करणीसिंह जी के सानिध्य में शुरूआती दिनों में काम किया एवं आगे का मार्ग मिला,
10 अगस्त,2013 की शाम को दलूसर जाते समय गिरदावरजी के घर मैं व टीटू दोनों गये, गिरदावरजी भी हमें अचानक अपने घर पर देख खुश हुए, गिरदावर जी के अनुसार उनके पिताजी ग्राम सावर के जागीरदार थे, उन दिनों ग्राम सावर की आबादी मात्र 50 घरों की थी, उन दिनों उंट एक बहुमूल्य पशु था और उंटों की चोरियां भी बहुत हुआ करती थी, सावर ग्राम के उंट पालक हमारे यहां रात्रि को अपने उंटों को हमारे गढ में बांधते थे और पूरी रात उंटो की रखवाली की जाती थी ताकि चोर उंट न चुरा सके,
गिरदावर जी के कथनों से तत्समय उंटो के मोल और महता लक्षित होती है एवं उंट की जनमानस की प्रासांगिकता भी तय होती हैा
उपरोक्त चित्र गिरदावर जी के गढ का हैा
Good
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