Fort have two gate

महत्‍वपूर्ण जानकारी : गढ के दो द्वार होते थे, जो दोनों ही प्रथम द़ष्‍टया देखे जा सकते हैं। मुख्‍य द्वार अलंक़त होता था परन्‍तु दूसरे द्वार पर किसी प्रकार का अलंकरण आदि नहीं किया जाता था। जिज्ञासा होती है कि दूसरा द्वार किस काम में आता है। जब श्री सुरेन्‍द्रसिंह जी के साथ सात्‍युं गढ गया तो उनके द्वारा यह बताया गया कि सभी शुभ कार्य एवं आवागमन मुख्‍य द्वार से होता था। गढ में किसी व्‍यक्ति का देहावसान होने पर शव यात्रा की निकासी हेतु ही उस द्वार का एक मात्र उपयोग किया जाता था। यह उदासीन द्वार की सामने की दिशा में ही शमशान घाट होता था। तस्‍वीर में सात्‍युं का गढ दिखाया गया है। इस गढ का निर्माण रावत कांधल के पुत्र एवं बणीर के पिता बाघसिंह द्वारा करवाया गया है। प्रथम तस्‍वीर में गढ का मुख्‍य दरवाजा तथा दूसरी तस्‍वीर में उदासीन दरवाजा दिखार्इ दे रहा है।

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