मेरे जीवन की सबसे अनुपम खोज

मेरे जीवन की सबसे अनुपम खोज - मैं आपको मेरे जीवन की सबसे अनुपम खोज के बारे में बताने जा रहा हूं। कुछ दिनों पहले मेरे प्रात: स्मरणीय श्री नारायण बडे भाईसाहब जो रतननगर कस्बे के प्रबुद्ध नागरिक है, ने मुझे सरदारशहर तहसील के ग्राम हालासर में सदियों पूर्व हुई घटना के बारे में बताया और सुनकर मैं अचम्भित रह गया और हालासर जाने का प्रोग्राम बनाया । हालासर सरदारशहर तहसील के उतरादे ग्रामों में से एक है जो सरदारशहर मेगा हाइवे से 24 किमी दूर उतर 2 किमी पश्चिमी एप्रोच मार्ग पर स्थित है। श्री नारायणजी भाईसाहब ने घटना की जिक्र यूं किया कि यह घटना किस समय की है कोई नहीं जानता, उस समय सामाजिक सरोकारों में भागीदारी अपने चरम पर थी और मेले- खेळे, भात - बारात आदी में बढ-चढकर हिस्सा लिया जाता था। उस समय भात के प्रयोजनार्थ अपने ग्राम की बहिन को भात में देशी घी के घडे दिये जाते थे और भात को घडों की संख्या के आधार पर आंका जाता था। इस हेतु बहुत सारे ग्रामवासी भात की रस्म‍ हेतु घडो के साथ रवाना हुए। भात की रस्म पूरी कर दी गई एवं ग्रामवासी वापिस अपने-अपने घरों के लिए सामुहिक रूप से रवाना हुए। ईश्वर की कुदरत देखों बहिन ने जब घडों में हाथ्‍ा डाला तो घी के अतिरिक्त मिटी एवं गोबर मिला जिससे अति व्यथित होकर बहिन ने एक ऐसा श्राप दिया, ि‍ जिसका हश्र देखने वाला निर्भागी ही होगा। अगर यह घटना सच्ची है तो मेरा ऐसा मानना है कि इससे दुखद घटना का जिक्र मैंने इतिहास में कहीं नहीं सुना। बहिन ने श्राप दिया कि भात में इस प्रकार के घडे देने वालों पर पत्थर पडे और बहिन का ऐसा कहना था और भात में शामिल सभी व्यक्ति हालासर के जोहड में थे तब उन पर भगवान जाने कब यह विपदा आई कि सभी पत्थ‍र में समा गये। मौके पर जब जाकर देखा तो मेने इस घटना की सुनकर ठगा सा खडा का खडा रह गया और वहां उपस्थित हालासर ग्राम के श्री भंवरलाल द्वारा जो बात बताई उसे सुनकर हक्का बक्काप रह गया। श्री भंवरलाल ने बताया कि यह घटना सत्यतयुग की है और इन पत्थ्रों में मानव हडियां भी है और जब इन पत्थरों के पास आग जलाई जाती है तो मानव शरीर के जलने की गंध आती है। और श्री भंवरलाल ने बताया कि बरसात के मौसम में जिस प्रकार गीले चमडे में जाे गंघ आती है वह गंध इन पत्थरों के पास से गुजरने पर आती है। कोई व्य क्ति इन पत्‍थरों को कुरेदे तो मवाद जैसा पदार्थ निकलता है। मैं जब इन अदभुत पत्थ रों के पास गया तो मेरी आंखों में आंसू आ गये नम आंखों को लेकर पत्‍थरों की ओर देखकर मन ने कहा‍ कि सुनी गई यह घटना कितनी सत्य है, ईशवर ही जानता है, जिप्स्म पत्थरों में मानव हडियां का इस प्रकार होना उस समय घटित किसी भयंकर त्रासदी की ओर संकेत अवश्य करती है। अवश्य‍ ही उस समय क्या घटा होगा मैं नहीं जानता इन पत्थ रों के साथ मानव हडियों के अवशेष जो अब लगभग मिटी जैसे हो गये हैं। मैं बरबस ही कुछ पल ईश वन्दना की और इन आत्माओं की शांति के लिए प्रार्थना करते हुए भरे गले और नम आंखों से विदाई ली। 


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