मेरे शहर का तालाब सेठाणी का जोहडा

सेठानी का जोहडा मुझे कई कोणों से अचम्भित कर देता है। वास्‍तु के इस अनुपम उदाहरण की तुलना मैं उस मंदिर से कर सकता हूं जिसका पुजारी अपनी आजीविका एवं सन्‍तानों के बेहतर भविष्‍य की तलाश में दिशावर चला गया हो और पूजा के अभाव में देवता किसी पुजारी की खोज में अन्‍यत्र वासित हो गया हो, रह गया शेष यह खण्‍डहर जो पश्चिम दिशा से आने वालों को कह उठता है कि मेरे शहरवासियों से बच के रहना जो मुझमें जल रूपी जीवन का वास होने पर भी मेरा ख्‍याल नहीं रख सके। एक दिन बात करते समय यह तालाब मुझसे बोला दोस्‍त मनुष्‍य की किस्‍मत और ईमारत का वास्‍तु खराब हो तो वह शीर्ष पर कदापि नहीं पहुंच सकता है। तुम मुझे गौर से देखो तो सही मैं और मेरा गणेश दोनों दक्षिणाभिमुखी हैं, अब दोष दूं तो किसे, अभावों के दोष को कम करने हेतुक अभाव के दिनों में मेरा जन्‍म हुआ, पर विडम्‍बना तो देखो मैं आज स्‍वयं समय से पहले बूढा हो चला हूं। पर देखना मेरे मित्र इस शहर की पहचान का भी यही होगा, जब मैं ना रहूंगा तब पश्चिम दिशा से आने वाले परदेशी कहेगें कभी यहां एक भव्‍य चौमुखा तालाब हुआ करता था जिसकी ख्‍याति उसे निर्मित करने वालों के विशाल हरदय की तरह दूर-दूर तक थी।

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