बिणजारे की कहानी

बिणजारे की यह घटना मुझे सम्‍मोहित करती रही है। मेरा मन था कि जब मैं बिणजारे एवं कुते की समाधि की फोटो खिंचूगा तब ही साहित्‍यकार श्री श्ंकरलाल झिखनाडिया द्वारा तरतीब से इस कहानी को लिखुंगा। बहुत पुरानी बात है, एक बिणजारे की बाळद चूरू में आई एवं चूरू शहर के पींजरापोल मार्ग पर खुली जगह देखकर अपणो डेरो जमायो। अपनी बिणद अर्थात व्‍यापार प्रयोजन हेतु बिणजारे को रकम अर्थात धन की आवश्‍यकता हुई। इसी कारण वह चूरू शहर के एक महाजन के पास रकम उधार लेने हेतु गया। सेठ पूर्व से ही बिणजारे काे एवं उसकी इमानदारी से परिचित था। महाजन ने बिणजारे से कहा कि रकम तो तूं चाहे जितनी लेजा पर मेरा एक उसूल है कि मैं बिना कोई वस्‍तु अडाण रखे रकम ना देउं। सेठ री बात सुनकर बिणजारो बाेल्‍यो सेठां मेरे पास मेरो ओ कुतो है आप इन अडाण राख ल्‍यो, रकम चुकता करन के बाद मैं म्‍हार कुत न ले ज्‍यास्‍यूं। सेठ कुत न राख लियो और बिणजारे न रकम गिण क दे दी। विधाता को लेख तो देखो बी रात ही चोरां सेठ की हेळी मांय चोरी करी। चोर चार जणां हा। कुतो चोरां न चोरी करतो चुपचाप देखतो रहयो । जद चोर सोनो चांदी रोकडा लेर चाल्‍या और कुतो बांक गेळ होग्‍यो आग चाळ कर शहर से बाहर एक तालाब में चाेरी की गठरी गेर दी और चले गये। कुते ने दूर से ही चोरी की इस घटना को देख लिया और सुबह चोरी का पता चलने पर आसपास के लोग एकत्रित होने लगे। कुते ने जल्‍दी जल्‍दी सेठ की धोती खींचनी आरम्‍भ कर दी और विचलित सा हो कभी अन्‍दर जाये और कभी बाहर आने लगा। एक व्‍यक्ति ने कहा कि बिणजारे का कुता स्‍याणा हाेवे इसके लारे लारे चलणा चाहिये। कुता आगे चलने लगा और करीब दस एक व्‍यक्ति उसके पिछे चलने लगे। कुता उस तालाब के पास जाकर ठहर गया और तालाब के पानी में कुद गया और चोरी की गई गठरी बाहर निकाल लाया। इस पर सेठ कुते पर बहुत खुश हुआ क्‍यों कि उसे चोरी का समस्‍त सामान वापिस मिल गया। सेठ ने बिणजारे के नाम एक पत्र लिखा जिसमें यक उल्‍लेख किया कि ''म्‍हारा रिपिया सूद सहित म्‍हे ले लियां हां। अब में थारे कुते ने छोडूं हूं। '' यह लिख कर पत्र कुते के गले में डोरी डाळ कर बांध दिया और कुते को कहा कि अब बिणजारे के पास चले जाओ। कुतो सीधो सीधो भागतो बिणजारे के डेरे पर गया। कुते को आता देख बिणजारा मन मन ही मन बोला '' ओ तो सेठ ने धोखो देर आयो है'' और बिणजारे ने कुते को गोली मार दी। कुता ने मौके पर ही प्राण त्‍याग दिये। कुते के गले में पत्र देख कर एवं पढ कर बिणजारे को बहुत पछतावा हुआ जिसका परिणाम बिणजारे ने खुद को ही गोली मार ली। चित्र में ये दोनों समाधियां जिनमे से एक कुते की है एवं दूसरी बिणजारे की है। जो आज भी मौजूद है।



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